वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण 1 फरवरी को इस साल का बजट पेश करने वाली है. इसमें आने वाले वित्तीय वर्ष में सरकार की आमदनी और खर्चे की जानकारी मिलेगी.
इस बजट का महत्व इसलिए भी है क्योंकि गिरती अर्थव्यवस्था के बीच मोदी सरकार 2.0 के पास आम जनता और कारोबारियों को बताने का बड़ा मौका होगा कि वो इस आर्थिक सुस्ती को गंभीरता से ले रही है और इससे निकलने के कदम उठा रही है.
लेकिन, बजट से पहले इससे संबंधित कुछ शब्दावलियों को भी समझना ज़रूरी है ताकि बजट समझा जा सके.
सरकार की कुल सालाना आमदनी के मुक़ाबले जब ख़र्च अधिक होता है तो उसे राजकोषीय घाटा कहते हैं. इसमें कर्ज़ शामिल नहीं होता.
साल 2017 में बजट की घोषणा करते हुए वित्त मंत्री अरुण जेटली ने कहा था कि उन्हें उम्मीद है कि साल 2017-18 में राजकोषीय घाटा कुल जीडीपी का 3.2 फ़ीसदी होगा. ये इसके पिछले वित्तीय वर्ष के लक्ष्य 3.5 फ़ीसदी से कम था.
वर्तमान में ढाई लाख रुपये तक की सालाना कमाई पर कोई टैक्स नहीं लगता है.
हालांकि, ये अनुमान है और उम्मीद लगाई जा रही है कि सरकार पर्सनल इनकम टैक्स की सीमा बढ़ाने की योजना बना रही है ताकि लोगों की खरीदने की क्षमता को बढ़ाया जा सके.
प्रत्यक्ष कर वो हैं जो देश के नागरिक सरकार को सीधे तौर पर देते हैं. इसमें टैक्स किसी व्यक्त की आय पर लगता है और इसे किसी अन्य व्यक्ति को ट्रांसफर नहीं किया जा सकता.
प्रत्यक्ष कर में इनकम टैक्स, वेल्थ टैक्स और कॉरपोरेट टैक्स आते हैं.
अप्रत्यक्ष कर वो हैं जिनमें टैक्स का भार किसी अन्य व्यक्ति पर ट्रांसफर किया जा सकता है जैसे कोई सर्विस प्रोवाइडर और विनिर्माता, सेवा या उत्पाद पर टैक्स लगाता है.
अप्रत्यक्ष कर का उदाहरण जीएसटी है जिसने वैट, सेल्स टैक्स, सर्विस टैक्स, लग्ज़री टैक्स जैसे अलग-अलग टैक्स की जगह ले ली है.